سنی اجتماع:پہلے دن آزادمیدان میں خواتین کاجم غفیر مولانامحمدشاکرعلی نوری نے خطاب میں زوردیاکہ معاشرے کوتباہی سے صرف خواتین ہی بچاسکتی ہیں، حیاکی بحالی اورنکاح کے تقدس پرزور
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personحاجی شاھد انجم
دسمبر 12, 2025
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ممبئی:(پریس ریلیز)عروس البلادممبئی کے قلب میں واقع آزادمیدان میں جمعہ کی نمازکے بعدجب قرآن مجیدکی میٹھی آوازگونجی تاحدنظرپورامیدان روحانیت کی خوشبوسے مہک اٹھا۔یہ سنی دعوت اسلامی کے سہ روزہ اجتماع کاپہلادن تھا۔
آج کے دن ممبئی ومضافات سے پورے مہاراشٹراور مختلف ریاستوں سے آئے ہوئے خواتین کے قافلے جب آزادمیدان میں داخل ہوئے توحسن انتظام ،ایمان افروز ماحول ، نظم وضبط اوروقارنے انہیں خوش آمدیدکہا۔میدان کے مختلف گوشے تلاوت قرآن ،دعاؤں اورنمازوں سے سجے ہوئے تھے ۔معین المشائخ حضرت سیدمعین میاں نے اپنے افتتاحی دعائیہ کلمات میں کہاکہ سنی دعوت اسلامی کایہ ۳۳واں اجتماع ہے ۔۱۹۹۲میں اس کاپہلااجتماع ہواتھا۔تین دہائیوں کے اس سفرمیں سنی دعوت اسلامی نے ہزاروں نوجوانوں کی زندگیاں بدلی ہیں۔ اپنے خصوصی خطاب میں امیرسنی دعوت اسلامی داعی کبیرمولانامحمدشاکرعلی نوری نے زنا اور بے حیائی کے تباہ کن اثرات پر سخت تنبیہ فرماتے ہوئے واضح کیا کہ زنا صرف ایک ذاتی گناہ نہیں بلکہ یہ پوری انسانیت اور معاشرے کے لیے تباہی کا باعث ہے۔ آپ نے اس کےچار خوفناک نتائج بیان فرماتے ہوئے خبردارکیاکہ جس معاشرے میں بے حیائی عام ہو جاتی ہے، وہاں بے وقت اموات (Unnatural Deaths) کی کثرت ہو جاتی ہے۔وہ معاشرہ قحط (Famine) اور معاشی تنگی کا شکارہوجاتا ہےاورفحاشی سے وہ قوم زوال کا شکار اور تباہ وبربادکردی جاتی ہے۔ روحانی نقصان کا ذکر کرتے ہوئے داعی کبیرنے فرمایا کہ زنا انسان کے چہرے سے نور (Spiritual Light) چھین لیتا ہے جس سے انسان روحانی تاریکی میں ڈوب جاتا ہے۔مولانا نوری نے اس بات پر زور دیا کہ اس تباہی سے بچنے کا واحد راستہ یہ ہے کہ خواتین اپنے مقام کو پہچانیں اورحیا کے زیور کو اپنا کر معاشرے کی اصلاح کریں۔ معروف خطیب سیدامین القادری نگراں سنی دعوت اسلامی مالیگاؤںنے اپنے ولولہ انگیزاصلاحی خطاب کرتے ہوئے خواتین کوتلقین کی کہ ہم اپنی زندگی جہنم کے راستے پرچلتے ہیں مگرپھربھی جنت کی آرزورکھتے ہیں ۔یہ ہماری بہت بڑی بھول ہے۔انہوں نے کہاکہ جب حضرت نوح علیہ السلام کی بیوی اوران کابیٹااپنے برے اعمال کے باعث جہنم میں جاسکتاہےتوہم آپ کی کیاحیثیت ہے۔انہوں نے بڑے افسوس اوردردکے ساتھ کہاکہ جس قوم میں چچازاد،خالہ زاد،پھوپھی زاداورماموں زادبہنوں کےلیے بھی پردہ فرض ہے ،آج وہی بے خبرہیں ،شادیوں میں ایسی بے حیائیاں رواج پاگئی ہیں کہ ہمارے گھروں سے برکتیں اٹھ گئی ہیں اورہمارامعاشرہ بربادہورہاہے۔سیدصاحب نے کہاکہ لوگ سمجھتے ہیں کہ جنت پالیناآسان ہے مگراتنی آسان نہیں ہے جتناکہ ہم لوگوں نے سمجھ لیاہے۔جنت پانے کے لیے اپنے آپ کورسول اللہ کی اطاعت میں ڈھالناہوتاہے ۔صرف نعروں اوردعووں سے جنت نہیں ملتی۔انہوںنے حیرت کااظہارکرتے ہوئے کہاکہ جس عورت کومسجدجانے کی اجازت نہیں آج وہ بیوٹی پارلرجارہی ہے۔ یوکے سے تشریف لائے خطیب خصوصی مفکر اسلام علامہ قمر الزماں خان اعظمی سکریٹری جنرل ورلڈ اسلامک مشن لندن نے اپنے بصیرت افروز خطاب میں عورت کی عزت، وقار اور سماجی قیادت پرزبردست گفتگوکی ۔انہوںنے کہاکہ عورت کوقیادت کاحق دارسب سے پہلے اسلام نے ہی بنایاورنہ اسلام کے سواجتنے بھی مذاہب ہوئے یاہوئے یادنیامیںجتنے بھی تمدن پیداہوئے ،کسی نے بھی عورت کااس کاجائزسماجی مقام نہیں دیا۔مفکراسلام نے اپنے تفصیلی خطاب میں انسانی معاشرے کی تشکیل میں عورت کے کردار پر نہایت اہم نکات پیش کیے۔ انہوں نے کہا کہ اسلام سے پہلے دنیا کے بڑے معاشروں میں عورت کی حیثیت بے حد پست تھی؛ اسے کنیز سمجھا جاتا تھا، بازاروں میں فروخت کیا جاتا تھا اور کئی علاقوں میں بچیوں کو زندہ دفن کر دیا جاتا تھا۔ دریائے نیل پر ہر سال ایک لڑکی کی قربانی “عروسِ نیل’’ کے نام سے دی جاتی تھی۔ حد تو یہ کہ عورت کے احساس اور شعور پر بھی سوال اٹھایا جاتا تھا۔علامہ اعظمی نے کہا کہ اسلام کی آمد نے عورت کی تقدیر بدل دی۔ قرآن عظیم نے عورت کو مرد کا معاون بنایا اور علمی، فکری، سیاسی، معاشی اور اخلاقی میدانوں میں بھرپور کردار ادا کرنے کے مواقع فراہم کیے۔ اسلام کے دور میں خواتین نے حدیث، فقہ، تدریس، طب، فلکیات اور ادب کے شعبوں میں اپنی صلاحیتوں کا لوہا منوایا۔ مفتی محمدنظام الدین رضوی (شیخ الحدیث وچیف مفتی جامعہ اشرفیہ مبارک پور)نے سوال جواب کے سیشن میں مختلف سوالات کے جوابات دیے۔ایک سوال کے جواب میں انہوںنے کہاکہ والدنے اگرزندگی میں بیٹوںکوکسی جائیدادمیں نشان لگاکریہ کہہ دیاکہ یہ زمین تمہاری ہے ،یہ تمہاری ہے اوریہ یہ تمہاری ۔توباپ کے مرنے کے بعدیہ زمین انہی بیٹوں کے پاس جائے گی لیکن اگرباپ نے صرف یہ کہا کہ فلاں زمین تم لوگوں کی ہے لیکن بیٹوںنے اس پرقبضہ نہیںکیاتھاتوباپ کے مرنے کے بعدبیٹوں کاجائیدادپرقبضہ کرنادرست نہ ہوگااورپھرباپ کے مرنے کے بعدوراثت جاری ہوگی ۔ ایک اہم نکتے کی طرف اشارہ کرتے ہوئے مفتی صاحب نے کہاکہ نمازوغیرہ کے مسائل کی طرف توقرآن نے صرف اشارہ کیاہے اوراس کی تفصیلات ہمیں سیرت نبوی میں ملتی ہیں مگروراثت کےمعاملے میں قرآن کریم نے بہت تفصیل سے بیا ن کیے ،قرآن کریم نے اس میںکوئی گوشہ باقی نہیں چھوڑا۔اس سے سمجھ میں آتاہے کہ وراثت کی اسلام میں کس قدراہمیت ہے مگرافسوس ہم اس سے ناواقف ہیں ۔یہ بڑے دکھ کی بات ہے کہ بہنوں کی وراثت بھائی نہیں دیتے بلکہ والدین بھی اپنی جائیدادعام طورپربیٹوںکوہی دے دیتے ہیں ۔یہ بہت بڑاظلم ہے ۔
الحاج قاری محمدرضوان اورمولانامحمدعارف پٹیل (یوکے )سمیت مختلف علماومبلغین نے بھی اپنے اپنے طورپرتربیتی خطابات فرمائے اورنعت خوانوں کی اپنی مسحورکن آوازیں وقتاًفوقتاًاجتماع کے روحانی ماحول کومزیدپرکشش بناتی رہیں اور اس طرح یہ پہلے دن کایہ اجتماع رقت انگیزاجتماعی دعاؤںاورصلوٰۃ وسلام کے ساتھ اختتام کوپہنچا۔ मौलाना शाकिर नूरी ने 33वें सालाना सुन्नी इज्तेमा में 'हया' की बहाली और 'निकाह की पाकीजगी' पर जोर दिया मुंबई, भारत – 12 दिसंबर 2025 – आज आजाद मैदान में 33वें सालाना इंटरनेशनल सुन्नी इज्तेमा के उद्घाटन सत्र में महिलाओं की एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए, सुन्नी दावते इस्लामी के संस्थापक मौलाना शाकिर नूरी ने शादी के पवित्र रिश्ते और समाज के नैतिक ढांचे को बचाने में 'हया' (लज्जा/Modesty) की अहम भूमिका पर जोर दिया।
तीन दिवसीय इज्तेमा के पहले दिन, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए समर्पित है, मौलाना नूरी ने वैवाहिक बंधन के आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे एक "मुकद्दस रिश्ता" (Sacred Relationship) बताया, जिसकी सुरक्षा करना पति और पत्नी दोनों की जिम्मेदारी है। अपने संबोधन में, मौलाना नूरी ने रिश्तों में आने वाली "भटकाव की स्थिति" की पहचान की। उन्होंने नैतिक गिरावट के बारे में चेतावनी देते हुए कहा: > "बे-हयाई, अनैतिकता (Immorality) की ओर ले जाती है। अश्लीलता, जिना (Fornication) की ओर ले जाती है। और जिना सबसे घिनौना अपराध है।" > उन्होंने कहा कि समाज में उत्तेजक व्यवहार आम हो गया है, जिसे डिजिटल युग ने और हवा दी है। भाषण में इस बात पर जोर दिया गया कि कैसे सोशल मीडिया के टूल्स पति-पत्नी के बीच "गैर-हकीकी उम्मीदें" (Unrealistic Expectations) पैदा कर रहे हैं, जिससे असंतोष बढ़ता है और अक्सर यह एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर्स (ना-जायज ताल्लुकात) और परिवारों के टूटने का कारण बनता है।
महिलाएं: समाज की निर्माता
इस्लाम में महिलाओं के ऊंचे दर्जे को दोहराते हुए, मौलाना नूरी ने पत्नी को "घर की मलिका" (Queen of the House) बताया। उन्होंने वैवाहिक अधिकारों के संतुलन पर विस्तार से बताया, जहां पति देखभाल और पालन-पोषण (Provider) के लिए जिम्मेदार है, वहीं पत्नी घर की भावनात्मक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक महिला का असली गहना शारीरिक नहीं, बल्कि उसका नैतिक चरित्र और हया है।
उन्होंने टिप्पणी की, "एक महिला अपने अच्छे चरित्र से इस दुनिया और आखिरत की जिंदगी को खूबसूरत बना सकती है। अच्छे संस्कारों वाली मां ही एक नैतिक परिवार और समाज की परवरिश कर सकती है।" जिना (Fornication) के विनाशकारी परिणाम
सुन्नी दावते इस्लामी के संस्थापक, मौलाना शाकिर नूरी ने जिना के विनाशकारी परिणामों के बारे में कड़ी चेतावनी दी। शादी की पवित्रता पर अपनी बात जारी रखते हुए, उन्होंने व्यापक अनैतिकता के गंभीर परिणामों को रेखांकित किया: जिना के चार विनाशकारी परिणाम:
मौलाना नूरी ने बताया कि पाप का प्रभाव केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरी सभ्यता पर पड़ता है:
अप्राकृतिक मृत्यु (Unnatural Death): उन्होंने चेतावनी दी कि प्रचलित अनैतिकता समाज में अचानक और अप्राकृतिक मौतों को दावत देती है।
अकाल और आपदा (Famine): उन्होंने कहा कि जब हया (लज्जा) खत्म हो जाती है, तो यह कमी, अकाल (कह़त) और गरीबी की ओर ले जाती है।
कौमों का पतन (Decline of Nations): इतिहास गवाह है कि जब कोई समाज अश्लीलता में डूब जाता है, तो उसे अनिवार्य रूप से विनाश और पतन का सामना करना पड़ता है।
रूहानी नूर का खात्मा (Loss of Spiritual Light): व्यक्तिगत स्तर पर, उन्होंने जोर देकर कहा कि "जिना इंसान के चेहरे से नूर (आध्यात्मिक चमक) छीन लेता है," जिससे वह आध्यात्मिक अंधेरे में रह जाता है।
समाज की रोशनी की बहाली मौलाना नूरी ने निष्कर्ष निकाला कि इस गिरावट को रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि महिलाएं, जो "घर की मलिकाएं" हैं, हया के परचम को थामे रहें और एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करें जो नैतिक चरित्र पर आधारित हो। अल्लामा कमरउज्ज़मां खां आज़मी और मुफ्ती निजामुद्दीन साहब ने सुन्नी इज्तेमा में 'महिला शिक्षा' और 'अधिकारों' पर जोर दिया
इस्लाम में महिलाओं की शिक्षा और कानूनी अधिकारों के महत्वपूर्ण विषयों पर खिताब किया। इस्लाम महिलाओं को उच्च शिक्षा, आर्थिक आजादी और शादी में अपनी मर्जी का पूरा अधिकार देता है।
शिक्षा (इल्म) सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं है
इल्म हासिल करना हर मुसलमान (मर्द और औरत) पर अनिवार्य (फर्ज़) है।
हजरत आयशा (रज़ि.) की मिसाल: उन्होंने बताया कि हजरत आयशा (रज़ि.) ने लगभग 2,210 हदीसें रिवायत की हैं और वह कई सहाबा की उस्ताद थीं। यह सबूत है कि एक महिला हया (पर्दे) में रहते हुए भी एक बड़ी स्कॉलर बन सकती है।
"एक शिक्षित मां ही एक शिक्षित समाज की गारंटी है।" महिलाओं के अधिकार और सम्मान
संपत्ति का अधिकार: एक महिला को अपनी कमाई, संपत्ति और धन पर पूरा अधिकार है। शादी के बाद भी, पति या पिता को उसकी अनुमति के बिना उसकी निजी दौलत को छूने का कोई हक नहीं है।
मेहर और भरण-पोषण: निकाह के समय 'मेहर' पर सिर्फ पत्नी का हक है। इसके अलावा, घर का पूरा खर्च उठाना पति की जिम्मेदारी है, चाहे पत्नी कितनी भी अमीर क्यों न हो।
* शादी में मर्जी: मुफ्ती साहब ने स्पष्ट किया कि निकाह के लिए महिला की सहमति (Consent) सबसे जरूरी है।
> "जबरदस्ती शादी करना सख्त मना है। निकाह के वक्त पहला हक औरत का है। अगर वह शादी के मंडप में भी प्रस्ताव ठुकरा दे, तो बारात को वापस लौटना होगा, लेकिन उसकी मर्जी के बिना निकाह नहीं हो सकता।"
> तलाक और खुला: जहां पति को तलाक का हक है, वहीं पत्नी को भी 'खुला' (Khula) के जरिए शादी खत्म करने का अधिकार दिया गया है।
सत्र का समापन पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इस कथन के साथ हुआ: "तुम में से सबसे बेहतर वो है, जो अपनी पत्नी के साथ सबसे अच्छा बर्ताव करता है।”